Tilbhandeshwar Temple Lamheta Ghat (तिलभांडेश्वर मंदिर)

एक रहस्यमयी शिवलिंग "नर्मदा के पावन तट"

विश्व प्रसिद्ध धुआंधार के पास लम्हेटाघाट में प्राचीन तिलभांडेश्वर मंदिर है। इसका उल्लेख धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। इस स्वयंभू शिवलिंग के बारे में वर्णित है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र की भूमि पर तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के मध्य शिवलिंग दिखा। जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा तो पूजा-अर्चन करने के बाद तिल चढ़ाने लगे। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि तभी से इन्हें तिलभांडेश्वर कहा जाता है।

स्कंध पुराण में उल्लेख है कि आम्रकूट पर्वत पर ध्यानस्थ देवाधिदेव महादेव की योगस्थ देह से स्वेत बिंदु गिरा और रूद्रदेहा-नर्मदा के पुण्यसलिला स्वरूप में प्रवाहित हो गया। अमरकंटक से प्रवाहित सरिता जब जबलपुर के नीलगिरी पर्वत के सम्मुख पहुंचीं तो अपने मूल पश्चिमोन्मुखी प्रवाह को अपवाद के रूप में बदलते हुए डेढ़ किलोमीटर के लिए उत्तराभिमुख हो गईं। ऐसा इसलिए ताकि उसी दिशा में स्थित तिलभांडेश्वर मंदिर में विराजमान शिवपिता के दर्शन करती हुई प्रवाहमान हों। तिलभांडेश्वर मंदिर के शिवलिंग की विशेषता यह है कि उसमें हर साल तिल-तिल बढ़ोत्तरी होती है।